Saturday, May 30, 2009

श्रीअरविन्द के ''भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ'' पुस्तक

एनजीओ बनाम सरकार

Thursday , Apr 16,2009, 08:38:04 PM आज तो हमारी विशाल ब्यूरोक्रेसी को देखकर श्रीअरविन्द के ''भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ'' पुस्तक के इस अंश की याद आती है ''प्राचीन भारतीय प्रशासनिक तंत्र का क्रमिक विकास तत्समय विद्यमान रीति रिवाजों तथा व्यवस्थाओं को ये रखकर तथा बलाए ताक में रखकर, तथा सुनिश्चित परिपाटियों का, सामाजिक व राजनैतिक पूर्वोदाहरणों का निर्वाह करते हुए ही हुआ है। इसने कभी भी जन-जीवन की स्वाभाविक मनोवृत्ति के स्थान पर उस यन्त्रचालित एवं एकांगी तंत्र को नहीं अपनाया, जो कि यूरोपीय देशों की आज दिखाई देने वाली भीमकाय नौकरशाही के रूप में सामने आई है।'' Deshbandhu, Online news portal,देशबन्धु पत्र नही ... श्री अरविन्द - विकिपीडिया

16-चिंतन्- टिप्पणी जोड़ें khorendra kumar द्वारा 23 मई, 2009 6:48:00 AM IST पर पोस्टेड # चिंतनश्रीअरविंद कहते हैकि मनुष्य जो कुछ सोचता है ,उस चिंतन के तथ्य के कारनठीक वही बन सकता है /इस तथ्य का ज्ञान की मनुष्य जो सोचता है ठीक वही बन जाता है, मनुश्य की सत्ता के विकास के लिए एक बडीमहत्वपूर्ण चाबी है -और केवल सत्ता की संभावनाओं के दृष्टिकोण से ही नही ,संयम तथा इस चुनाव के दृष्टि कोण से भी की मनुश्य क्या होना चाहता है /{श्रीअरविन्द} Savitri Era of those who adore, Om Sri Aurobindo & The Mother.

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