सादर प्रणाम,
वैदिक परंपरा में विद्या या विदन्यान की दो धाराए रही हैं. वे एक दूसरे को पूरक हैं और साथ साथ बही हैं. परा विद्या (आध्यात्मिक विदन्यान) और अपरा विद्या (भौतिक विदन्यान). वैदिक रुशियों के आश्रमों पर दृष्टि डालें तो स्पष्ट हो जायेगा कि वैदिक काल में आध्यात्मिक और भौतिक जैसा कोई विभाजन नहीं था. जीवन एक अविभाज्य समग्र इकाई था. वैदिक काल के बाद का जीवन का ह्रास होने लगा और समग्रता की दृष्टि गायब हो गयी, तो जीवन में विभाजन आ गया. आध्यात्मिक और भौतिक दो विभाग बन गए. इतिहास पर दृष्टी डालने पर हम पाते हैं कि कभी एक पलड़ा भारी हो गया तो कभी दूसरा और एक पलड़े के अर्धसत्य को ही पूर्ण सत्य मान लिया गया. इससे जीवन के साथ अन्याय होता रहा -- यानी जब आध्यात्मिक पक्ष ऊंचे उठा तब भौतिक को नकार दिया गया. इस एकांगिता की प्रतिक्रिया में भौतिक पक्ष का उत्पान (जनम) हुआ तो आध्यात्मिक पक्ष को अस्वीकार कर दिया गया. -- जैसा कि आज हो रहा है. लेकिन मूल तथ्य यह है कि विकास चाहे आध्यात्मिक का हुआ है या भौतिकता का, जीवन जो कि समग्रता है इसका विकास हुआ ही नहीं. यह हमारे मानव इतिहास की बहुत बड़ी विडम्बना है.
श्री अरविंद आध्यात्मिक विदन्यान में एक क्रन्तिकारी अनुसन्धान-करता के रूप में वही स्थान रखते हैं जो भौतिक विद-न्यान में अल्बर्ट आईंस्टीन का है. श्री. अरविंद ने आईंस्टीन की तरह आध्यात्मिक विद-न्यान का स्वरुप ही बदल दिया और एक (mutation) के द्वारा पृथ्वी के जीवन को एक नये धरातल पर प्रतिष्टित कर दिया यानि मानव के स्थान पर एक दिव्य पुरुष - डिवाइन being - या पृथ्वी पुरुष को भावी जीवन के विकास आधार बना दिया. अब पृथ्वी के जीवन का भावी विकास इस दिव्य पुरुष के विकास पर आधारित रहेगा. यहाँ ध्यान राखने की बात यह है कि इस दिव्य पुरुष का आविर्भाव या अभ्युदय महज कोई आध्यात्मिक अनुभूति या चमत्कारी घटना नहीं है.
श्री अरविंद ने अपने अनुसन्धान के द्वारा जीवन के इस विभाजन और विखंडन का निराकरण करके जीवन को पुन्ह समग्रता का आधार प्रदान किया है और इस समग्र चेतना को, सुपर चेतना को, 'सुपर माईंड' या 'अतिमानस' का नाम दिया. सुपर माईंड की समग्र चेतना न केवल भूतकाल की मानव जीवन की विसंगति का अंत करती है बल्कि भविष्य के लिए एक नये मानवेतर दिव्य जीवन का भी आरम्भ करती है यह श्री. अरविंद के ऐतिहासिक अनुसन्धान का परिणाम है.
सन १९५८ में जब विनोबा जी पोंडिचेरी में माँ (the Mother ) का आशीर्वाद लेकर लौटे तो सर्वोदय कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि अतिमानस के रूप में पृथ्वी के ऊपर नये सत्य का उदय हो रहा है. यदि हमें नये भविष्य का निर्माण करना है तो मन से ऊपर उठ कर इस सत्य को अपने अन्दर धारण करना होगा. यदि हम ऐसा नहीं कर पाते तो हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि परमेश्वर इस सृष्टि का विनाश करना चाहते हैं. (विनोबा जी का यह कथन पवनार से प्रकाशित "मैत्री पत्रिका" में भी छपा था. )
विनोबाजी की यह उक्ति कि "जीवनम सत्य शोधनम" तो सर्व विदित ही है. श्री. अरविंद की स्थिती और अनुसन्धान की तथा विनोबा जी की सर्व विदित उक्ति के अनुभव के आधार पर मेरा भी इन दोनों से आकर्षण रहा है.
सुपर माईंड के रूप में पृथ्वी को उसका आत्मोदय प्राप्त हो गया है. सुपर माईंड पृथ्वी की आत्मा का नाम है. इस आत्मोदय ने पृथ्वी को वस्तु से व्यक्ति याने dead thing से living being बना दिया है. उससे आत्मोदय से सर्वोदय का रास्ता साफ़ हो गया है. प्रकृति के उद्धार का मार्ग प्रशस्त हो गया है. It is radical new dimention of life and existence and that only fulfills the aspirations of Gandhi ji and Vinobaj ji.
श्री. अरविंद ने ऐईनस्टीन की तरह भावी जगत का एक सूत्र दिया है. जिस प्रकार आईंस्टीन के सूत्र को लेकर आज के युवा वैज्ञानिकों ने एक महल की रचना कर डाली है उसी प्रकार हम को यानि Post Aurobindonian Spiritual Scientists को super-mind का सूत्र अप्लाय करके एक नये जीवन और जगत की सृष्टि करनी होगी. इसके लिए एक appropriate technology का पहले अनुसन्धान करना होगा.
" This is our immediate task and I am inspired for this action. "
आपके बोधप्रद मार्गदर्शन और सहचिन्तन के लिए नम्रतापूर्वक यह पत्र आपके पास भेज रहा हूँ . कृपया पहुँच दें.
जय जगत .......
विनम्र
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