Friday, November 11, 2011

Tuesday, August 16, 2011

श्रीअरविन्द का योग वैज्ञानिक है


श्री अरविंद एक सिद्धहस्त लेखक थे। उनके लेखन का आरंभ भवानी-भारती, दुर्गा स्तुति तथा वंदेमातरम् से हुआ। ये उनके क्रांतिकारी जीवन की रचनाएं हैं। भारत को स्वतंत्र देखना उनके जीवन का प्रधान उद्देश्य था। अलीपुर जेल से वापस आने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अब बाहर से नहीं भीतर (अंतरात्मा) से आंदोलन की आज्ञा दी तो वे पांडिचेरी चले गए जहां आजीवन योगी के रूप में प्रतिष्ठित रहे। भारत के स्वतंत्रता के निमित्त सदैव वे यहां से भी प्रयत्नशील रहे।
उनका लेखन अंग्रेजी भाषा में होता था।
दिव्य जीवन, गीता-प्रबंधन तथा श्री मां जैसे ग्रंथों के अतिरिक्त भी उनके अनेक ग्रंथ हैं जिनमें सर्वाधिक महत्व का सावित्री महाकाव्य है। यह उनकी अंतिम तथा समन्वित योग के सार तत्व की रचना है। अंग्रेजी भाषा का यह सबसे विशिष्ट महाकाव्य माना जाता है। अमेरिका में सायराकूसविश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा.पाइपर ने इस ग्रंथ के विषय में अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए हैं। इस महाकाव्य ने नवयुग की ज्योति का शुभारंभ कर दिया है। अंग्रेजी भाषा का यह सबसे विशिष्ट महाकाव्य है।
वस्तुत:सावित्री मनुष्य के मन को विस्तृत कर परम स्वयंभू तक ले जाने के लिए सबसे शक्तिशाली कलात्मक रचना है। यह विशाल है, भव्य है तथा इसमें रूपकों का चमत्कार है। मनुष्यों की पीढी दर पीढी इन निरंतर स्रोत से अपनी आत्मा का अमृतपानकरती रहेगी।
इसका कथानक श्री अरविन्द ने महाभारत से लिया तथा सावित्री और सत्यवान की प्रसिद्ध कथा को लेकर मनुष्य की मृत्यु पर विजय दिखाई है। उनके ही शब्दों में-सावित्री सूर्यपुत्री है सर्वोच्च सत्य की देवी है। सावित्री का पिता अश्वपति तपस्या का अधिपति है। सत्यवान का पिता द्युगत्सेनदिव्यमनहै। वस्तुत:यह कथन रूपक मात्र नहीं है। न इसके पात्र ही मानवीय गुणों वाले ही हैं वरन् वे सजीव और चेतन शक्तियों के अवतार और विभूतियां हैं। श्री मां ने सावित्री के विषय में जो कुछ कहा है वह इस प्रकार है-उन्होंने सारे विश्व को एक पुस्तक में उतार लिया है। यह अद्भुत, भव्य और अद्वितीय पूर्णता से भरी हुई रचना है। श्री अरविन्द का योग वैज्ञानिक है। भोग सत्य का एक छोर है तो वैराग्य दूसरा। संपूर्ण सत्य वह है जो दोनों को अपने भीतर समाहित करता है और फिर दोनों से आगे निकल जाता है। सावित्री इसी तथ्य का दिग्दर्शन कराती है। डारविनका विकासवादअधूरा है। क्या प्रकृति अब आगे कोई रचना नहीं करेगी! विकास का रथ रुक जाएगा? नहीं। अब प्रकृति मानव के भीतर अतिमानव की संभावनाएं तलाश रही है। श्री अरविन्द का समन्वित योग मानव को अतिमानव तक पहुंचाना है। इसी के निमित्त उनकी योग साधना थी। अतिमानवीचेतना मनुष्य के मन के भीतर छिपी हुई है। अब वह प्रकट होने के समीप है। मनुष्य अगर साधना पूर्वक उस चेतना को ग्रहण करने का प्रयास करे तो अतिमानसीचेतना अवश्य उत्तीर्ण होगी। प्रकृति के पीछे जो विश्वात्मा विराजमान है उसके साथ अभिन्नतास्थापित कर अनन्त शक्ति से शक्तिमान होना है। मनुष्य के अंदर जो सुप्त देवता विद्यमान है उसको जागृत कर मनुष्य का रूपान्तर साधित करना होगा। पृथ्वी की अन्तर्निहित विराट चेतना को उद्बुद्ध कर यहीं पर स्वर्ग राज्य को स्थापित करना होगा। इस महान ग्रंथ का काव्यानुवादमहान कवयित्री विद्यावती कोकिल ने हिंदी में किया है इसी से यह हमें उपलब्ध है।
डा. सरोजिनी कुलश्रेष्ठ 
महर्षि श्री अरविंद का सावित्री महाकाव्य

श्रीअरविंद के जीवन में अहंकार या अध्ययन नहीं बल्कि भागवत शक्ति ही संचालिका थी

139वें जन्मदिवस (15 अगस्त) पर विशेषः 

... 

भारत गौरव 
रविवार, 14 अगस्त 2011 00:00
देवदत्त

महर्षि अरविन्द घोष की जन्मशताब्दी (15 अगस्त 1972) पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री मा.स. गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी ने उनका स्मरण करते हुए अपने संदेश में कहा था ...हमारे राष्ट्र की समस्याओं के सम्यक् बोध और अपनी अंत:स्फूत्र्त भविष्य दृष्टि द्वारा उन्होंने हमें अनुसरण करने के लिए जो निर्देश दिए हैं उनसे हमारा सनातन धर्म, संस्कृति और राष्ट्र अखिल विश्व की मानवता के दीप्तिमंत, पावन और सामथ्र्य संपन्न नेता के रूप में निश्चय फिर खड़ा होगा।

श्रीअरविंद के जीवन में अहंकार या अध्ययन नहीं बल्कि भागवत शक्ति ही संचालिका थी। उनके पिता डा.कृष्णधन घोष ने भारतीयता के स्पर्श से बचाने के लिए बचपन में ही उन्हें लंदन पहुँचा दिया था। वहाँ उन्होंने आई.सी.एस की परीक्षा में प्रथम स्थान तो प्राप्त किया किंतु घुड़सवारी की परीक्षा में नहीं गये। उन्हें भारत माता की सेवा का भागवत-आदेश मिल गया था।
वे स्वदेशी के प्रवर्तक थे। शिक्षा क्षेत्र में वे राष्ट्रीय कालेज के आचार्य के रूप में आए और छात्रों के समक्ष आदर्श रखा कि भारत माता के लिए पढ़ो और तन, मन एवं जीवन को उसकी सेवा के लिए शिक्षित करो। विदेश जाओ ताकि वह विद्या लाओ जिससे भारत मां की सेवा हो, कष्ट सहो ताकि माता प्रसन्न हो।
राजनीति में वे सशस्त्र क्रांति के उद्घोषक थे। ब्रिाटेन में बम बनने के पूर्व ही श्री अरविंद के अनुयायी क्रांतिकारियों ने बम बना लिया था। अलीपुर बम केस मुजफ्फरपुर में जिलाधिकारी किंग्सफोर्ड पर प्रयोग के प्रयास का परिणाम था।
सन् 1896 से 1905 तक उन्होंने बड़ौदा रियासत में राजस्व अधिकारी से लेकर बड़ौदा कालेज के फ्रेंच अध्यापक और उपाचार्य रहने तक रियासत की सेना में क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण भी दिलाया था। हजारों युवकों को उन्होंने क्रांति की दीक्षा दी थी। डा. केशव बलिराम हेडगेवार भी उनमें थे।
घुड़सवारी की परीक्षा में न बैठने के कारण वे डरपोक कहे जाते थे, पर वे बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड़ के साथ घुड़सवारी पर जाते थे। एक बार एक वृद्धा ने न पहचानकर महाराज से बोझा उठवाने को कहा था। महाराज बोझा उसके सर पर रखवा ही रहे थे कि श्री अरविंद का घोड़ा आ पहुँचा। श्री अरविंद मुस्कुरा रहे थे। महाराज ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा था-व्देख रहा हूँ जिसे प्रभु ने बोझा उतारने का काम दिया है वह बोझा चढ़ा रहा है।
वे निजी रुपये-पैसे का हिसाब नहीं रखते थे। पर राजस्व विभाग में कार्य करते समय उन्होंने जो विश्व की प्रथम आर्थिक विकास योजना बनाई थी उसका कार्यान्वयन करके बड़ौदा राज्य देशी रियासतों में अन्यतम बन गया था। महाराजा मुम्बई की वार्षिक औद्योगिक प्रदर्शनी के उद्घाटन हेतु आमंत्रित किए जाने लगे थे।
बड़ौदा रियासत में दस्तूरी चलती थी। एक बार एक जमींदार के काम को श्री अरविंद ने इनकार कर दिया था। कुछ दिनों बाद उन्हें मेज पर 500 रुपये का लिफाफा मिला। पूछने पर सभी मुस्कुराते थे। अंत में चपरासी ने बताया कि उसी जमींदार की दस्तूरी में से आपका हिस्सा है। श्री अरविंद ने सर सुब्बा (दीवान) से शिकायत की तो वे भी मुस्कुराए और वह कार्य छोड़कर श्री अरविंद बड़ौदा कालेज में फ्रेंच अध्यापक पद पर पहुँच गये।
अध्यापन युग में वे मुम्बई के इन्दु प्रकाश पत्र में ब्रिाटिश शासन के विरुद्ध उग्र लेखों के लिए प्रसिद्ध थे। अचानक बंगाल में क्रांति यज्ञ की ज्वाला को धधकाने के लिए रु.665 मासिक की नौकरी छोड़ दी तो छात्रों ने समझा कि उन्हें और अच्छी नौकरी मिल गयी होगी। उन्होंने श्री अरविंद से पूछा, सर आपने यहाँ पढ़ाना छोड़ दिया?
व्हां संक्षिप्त सा उत्तर था।
सर! वहाँ आपको कितना वेतन मिलेगा?
-एक सौ पचास रुपये।
छात्रों को विश्वास हो गया कि वे पागल हो गये हैं।
वस्तुत: यह किसी संन्यासी का त्याग नहीं था। श्री अरविंद पर धर्मपत्नी मृणालिनी और बहन सरोजिनी का दायित्व भी था। अत: पैसे की जरूरत होने के बावजूद उन्होंने कठिनाई का मार्ग चुना। हालांकि उनके बड़े भाई विनय भूषण कभी कूचबिहार, कभी महिषादल रियासतों के दीवान बनकर राजसी ठाट से रहते थे।
श्री अरविंद कलकत्ता आए तो राजा सुबोध मलिक की अट्टालिका में ठहराए गये। पर जन साधारण को मिलने में संकोच होता था। अत: वे सभी को विस्मित करते हुए 19/8 छक्कू खान सामा गली में आ गये।
उन्होंने वर्तमान बंगलादेश में जाकर किशोरगंज में स्वदेशी आंदोलन प्रारंभ किया । वेश बन गया धोती और चादर। अब राष्ट्रीय विद्यालय से भी अलग होकर अग्निवर्षी पत्रिका व्वंदेमातरम्व् का प्रकाशन प्रारंभ किया।
इसी के साथ विप्लवी युवकों को चुन-चुनकर संगठन प्रारंभ हुआ। चन्द्रनगर के अज्ञात अध्यापक ने वंदेमातरम् को पत्र लिखा था। श्री अरविंद ने उसे खोज निकाला और वंदेमारतम् के सम्पादकीय विभाग में रख लिया। यही बने प्रख्यात विप्लवी उपेन्द्र बंद्योपाध्याय। ऐसे विप्लवी गण श्री अरविंद के संस्पर्श में आकर भारत माता के लिए प्राण न्योछावर कर सके। उपेन्द्र श्री अरविंद द्वारा संस्थापित विप्लवी प्रशिक्षण केन्द्र मानिकतल्ला बगीचे में शस्त्र और शास्त्र के प्रशिक्षक भी बने थे।
क्रांतिकारियों के हाथ में पिस्तौल के साथ बम आ जाने से ब्रिाटिश सरकार दहल उठी थी। एक दिन तड़के पुलिस अधीक्षक क्रेगन ने श्री अरविंद के घर पर छापा मारा। श्री अरविंद चटाई पर लेटे थे। पहले तो क्रेगन को यकीन ही नहीं हुआ कि 18 वर्ष लंदन में पढ़ा कोई व्यक्ति ऐसे रह सकता है। पर साथ के मजिस्ट्रेट ने जब मेज पर लैटिन और ग्रीक के शब्दकोष देखे तो उन्होंने उनकी कमर में बंधी रस्सी को खोलने का हुक्म दे दिया था।
अलीपुर बम केस: फाँसी  के अभियुक्तों के लिए बनी कोठरी में श्री अरविंद के साथ दो कम्बल और एक तसला था। जिससे वे स्नान करते, पानी पीते और उसी में दाल लेकर रोटी डुबाने की कोशिश करते तो वह दरवेश की तरह नाचने लगता था। श्री अरविंद के अनुसार तसला यदि जीवित होता तो ब्रिाटिश शासन का परम आज्ञाकारी आईसीएस अधिकारी हुआ होता।
उनकी योग साधना तो चल ही रही थी। जेल में ही उन्हें श्रीकृष्ण के दर्शन हुए और आदेश मिला कि राजनीति छोड़ दो। तब तक श्री अरविंद भी यही समझते थे कि वे समाज के नेता हैं और स्वतंत्रता संग्राम में उनके बिना काम नीं चल सकता है। पर श्रीकृष्ण ने कहा व्मैं तुम्हें जिस कार्य के लिए जेल में लाया हूँ उस कार्य की ओर मुड़ो। जब तुम जेल से छूटो तो याद रखना...कभी डरना मत, हिचकिचाना मत। मैं इस देश और इसके उत्थान में हूँ। मैं वासुदेव हूँ। मैं नारायण हूँ।
श्री अरविंद को सर्वत्र नारायण दिखाई देने लगे। उन्होंने देखा कि न्यायाधीश, वकील, वृक्ष, सर्वत्र नारायण हैं। उनके वकील थे देशबंधु चितरंजन दास। उन्होंने बड़ी कवित्वमयी भाषा में बहस की। उन्हें राष्ट्रवाद का उद्गाता, मानवता का प्रेमी और भविष्य का मंत्रद्रष्टा बताया। पर सभी को आश्चर्य में डालते हुए वे छूट गये। इधर बैरिस्टर चितरंजन दास के घर का असबाब तक बिक गया।
9 मई 1909 को जब वे जेल से छूटे तो उनके साथ छूटे सभी क्रांतिकारियों को चितरंजन दास के घर ले जाया गया। सभी ने जेल दुर्लभ स्नान किया। भोजन में तरह-तरह के व्यंजन परोसे गये।
श्री अरविंद ने गरीबी का वरण नहीं किया था। उनका जीवन गीता में वर्णित समबुद्धि का प्रतिफल था। स्वदेशी आंदोलन की आर्थिक चोट से बंगाल का विभाजन तो स्थगित हो गया था पर स्वाधीनता के लिए सशस्त्र क्रांति को ही वे श्रेयस्कर मानते थे। उत्तरपाड़ा की सनातन धर्म रक्षिणी सभा के कार्यकारी सचिव अमरेन्द्र चट्टोपाध्याय ने जब क्रांति दीक्षा लेनी चाही तो उन्हें श्री अरविंद के पास ले जाया गया। अमरेन्द्र ने कल्पना के विपरीत देखा कि लंदन में पले-बढ़े श्री अरविंद आधी धोती ओढ़े बैठे हैं। उन्होंने पूछा कि व्स्वाधीनता के लिए सर्वस्व त्याग का संकल्प है क्या? अमरेन्द्र ने उत्तर दिया था कि व्जितना बाकी था वह आज आपको देखकर पूरा हो गया।
अपने 15 अगस्त 1947 के संदेश में श्री अरविंद ने विश्वास प्रगट किया था कि चाहे जिस मार्ग से हो, चाहे जिस उपाय से हो भारत का विभाजन दूर होना चाहिए और होगा।
(महर्षि अरविंद की समाधि मुंबई के पास संजान स्टेशन से मात्र 8 किलोमीटर दूर स्थित नारगोल गाँव में भी है। इसी नारगोल गाँव में सबसे पहेल पारसियों का आगमन हुआ था। नारगोल में ओशो ने भी अपने जीवनकाल में इसी समाधि परिसिर में कई ध्यान शिविरों का आयोजन किया था। )
साभार-साप्ताहिक –पाञ्चजन्य से

Friday, August 05, 2011

Lectures by Saikat Sen in Noida


Noida Management Association and Noida Chapter of NIRC of ICSI Jointly Organizes An Evening Lecture on “Management by Consciousness” By Prof. Saikat Sen, Director, SAFIM  Date - 10th August 2011 (Wednesday) Time - 06:30 PM onwards Venue - NMA House, C-20/6A, Opp. JSS College, Sector-62, Noida-201306
Two-days Workshop On Harvesting Values SHAPING VALUES IN BUSINESS at NTPC Limited (A Government of India Enterprise) A Power Management Institute Plot No.5-14, Sector 16-A, Noida - 201301, U.P. Dates: 11th& 12th August 2011 Time: 9:30 to 5:30 Participants: Senior and Middle Managers of NTPC Conducted by SAFIM - Sri Aurobindo Foundations for Integral Management, Sri Aurobindo Society, Puducherry
A Presentation on “Consciousness and Business Management” by Prof. Saikat Sen on 13th Aug, 2011 Time 14:30 – 16:00 hrs at The Jaipuria Institute of Management A – 32 A, Sector 62, Noida - 201309