Saturday, August 21, 2010

सिवनी में सुभद्रा कुमारी चौहान और महर्षि अरविन्द समारोह

सुभद्रा कुमारी चौहान और महर्षि अरविन्द समारोह 14-15 अगस्त, 2010 को सिवनी में
साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल के तत्वावधान में 14-15 अगस्त, 2010 को सिवनी में सुभद्रा कुमारी चौहान और महर्षि अरविन्द समारोह आयोजित किया जा रहा है।

साहित्य अकादमी के निदेशक प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल ने बताया कि भारतीय स्वतंत्रता और उसके बाद के जनमानस को अपनी कविता से आंदोलित करने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान और महर्षि अरविन्द ऐसे तत्वदर्शी हैं, जिन्होंने भारतीय साहित्य को कई रूपों में प्रभावित किया है। अकादमी चाहती है कि यह प्रभाव जनता के सामने आये। अत: 14 अगस्त, 2010 की शाम 6.30 बजे सुभद्रा कुमारी चौहान का राष्ट्रीय, साहित्यिक एवं सामाजिक प्रदेय विषय पर प्रख्यात विद्वान डॉ. वीरेन्द्र नारायण यादव (छपरा-बिहार) की अध्यक्षता में विमर्श होगा। मुख्य अतिथि श्री राजेश त्रिवेदी, अध्यक्ष नगर पालिका परिषद, सिवनी रहेंगे। डॉ. आर्या प्रसाद त्रिपाठी (चित्रकूट), डॉ. सत्येन्द्र शर्मा (सतना), डॉ. राजकुमार डफू (जबलपुर) उपर्युक्त विषय पर वक्तव्य देंगे।

15 अगस्त, 2010 की सुबह 10 बजे सुभद्रा कुमारी चौहान की कार दुर्घटना स्थल पर पुष्पांजलि का कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा। इसी दिन शाम 6.30 बजे भारतीय दार्शनिक परम्परा एवं साहित्य में महर्षि अरविन्द का प्रदेय विषय पर आख्यान का कार्यक्रम स्थानीय विधायक माननीया श्रीमती नीता पटेरिया के मुख्य आतिथ्य में एवं डॉ. सावित्री सिन्हा (जबलपुर) की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में डॉ. दीनानाथ शुक्ल (जबलपुर), डॉ. मीनाक्षी स्वामी (इंदौर), डॉ. प्रदीप खरे (भोपाल) उपर्युक्त विषय पर व्याख्यान देंगे। स्थानीय समन्वयक के रूप में डॉ. अर्चना चंदेल कार्य करेंगी।

साहित्य अकादमी के निदेशक प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल ने सभी बुद्धिजीवियों, लेखकों, चिंतकों-विचारकों, शोधार्थियों और पाठकों से अपील की है कि इस समारोह में पधारकर अवश्य लाभ लें। उमा भार्गव

Sunday, August 15, 2010

योग और अध्यात्म में रम गए अरविंद

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान प्रखर राष्ट्रवाद की भावना से जनता को जबरदस्त रूप से आंदोलित करने वाले अरविंद जब इस बात पर पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि अब स्वाधीनता का उद्देश्य उनके बगैर भी पूरा हो जाएगा तब वह योग और अध्यात्म में रम गए.
अरविंद आश्रम से निकलने वाली पत्रिका ‘कर्मधारा’ के सह संपादक त्रियुगी नारायण के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि श्री अरविंद जब अलीपुर जेल में थे तब उन्हें साधना के दौरान भगवान कृष्ण के दर्शन हुए जिन्होंने उनसे कहा कि अब स्वाधीनता का कार्य तुम्हारे बगैर भी पूरा हो जाएगा. इस प्रकार वह योग और अध्यात्म में रम गए.
नारायण ने कहा कि उन पर जेल में स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान का भी गंभीर असर पड़ा. हालांकि उनमें योग के प्रति अनुराग पहले से पनप रहा था.
प्रकृति में गहन विश्वास करने वाले महर्षि अरविंद मानते थे कि मानव का विकास अतिमानव के रूप में करना है जहां वह विभिन्न बंधनों से मुक्त होगा.
अरविंद घोष का जन्म कलकत्ता में 15 अगस्त 1872 में हुआ था. उनके पिता डॉ. कृष्ण धन घोष अंग्रेजी शिक्षा के कट्टर समर्थक थे इसलिए उन्होंने अरविंद को सात साल की उम्र में उनके भाइयों के साथ ब्रिटेन भेज दिया. ब्रिटेन में अरविंद ने बेहद अभाव में बचपन गुजारा क्योंकि उनके डॉक्टर पिता अक्सर अपने बच्चों को मासिक खर्च भेजना भूल जाते थे.
ब्रिटेन में शिक्षा के बाद वह पिता की इच्छा पूरी करने के लिए आईसीएस की परीक्षा में बैठे. लेकिन दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि के दौरान उनके दिमाग में यह बात बैठ गयी कि उन्हें ब्रिटिश सरकार की सेवा नहीं करनी है और वह घुड़सवारी की परीक्षा में जानबूझकर शरीक नहीं हुए जिससे वह ब्रिटिश सरकार की प्रशासनिक सेवा में जाने से बच गये.
अरविंद 1893 में भारत वापस लौट आये. उनके पहुंचने से पहले एक बहुत बड़ा हादसा यह हुआ कि एजेंट ने उनके पिता को यह गलत सूचना दे दी कि जिस जहाज से अरविंद मुम्बई आ रहे थे वह पुर्तगाल में डूब गया. इस सदमे को उनके पिता बर्दाश्त नहीं कर पाए और चल बसे.
भारत पहुंचने पर अरविंद को बड़ौदा स्टेट की प्रशासनिक नौकरी मिली. वह विभिन्न प्रशासनिक विभागों के अलावा बड़ौदा कालेज में अंग्रेजी भी पढ़ाते थे. उनके शिष्यों में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जैसे कुछ योग्य शिष्य शामिल थे. इसके साथ ही वह हिंदी, संस्कृत और बांग्ला का गहन अध्ययन करने लगे जिनसे वह इंग्लैंड में वंचित हो गए थे. उन्होंने 1906 तक बड़ौदा स्टेट की नौकरी की. नौकरी के दौरान ही वह पर्दे के पीछे से स्वतंत्रता आंदोलन की राजनीति में भी दिलचस्पी लेने लगे.
स्वतंत्रता आंदोलन में भी उनकी अहम भूमिका रही. इतिहास के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डा पी पी गुप्ता बताते हैं, ‘बड़ौदा से कोलकाता आने के बाद महर्षि अरविंद आजादी के आंदोलन में उतरे. कोलकाता में उनके भाई बारिन ने उन्हें बाघा जतीन, जतीन बनर्जी और सुरेंद्रनाथ टैगोर जैसे क्रांतिकारियों से मिलवाया. उन्होंने 1902 में उनशीलन समिति ऑफ कलकत्ता की स्थापना में मदद की. उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ कांग्रेस में गरमपंथी धड़े की विचाराधारा को भी हवा दी.’
डा गुप्ता के अनुसार, अरविंद ने बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन में बढ़चढ़ हिस्सा लिया और इसके लिए लोगों को एकजुट करने के लिए उन्होंने राखियां बंधवाने का कार्यक्रम चलाया एवं हिंदू मुस्लिम एकता की अच्छी मिसाल पेश की.’ अरविंद घोष के विचार बहुत ही क्रांतिकारी थे. उन्होंने लिखा है, ‘राजनीतिक स्वतंत्रता राष्ट्र की प्राण वायु है. राजनीतिक स्वतंत्रता के लक्ष्य के बगैर सामाजिक सुधार, शैक्षणिक सुधार, औद्योगिक विस्तार और नस्ल का नैतिक सुधार बहुत बड़ी लापरवाही और व्यर्थ है.’
अरविंद का नाम 1905 के बंगाल विभाजन के बाद हुए क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ा और 1908-09 में अलीपुर बम कांड मुकदमा चला. इस दौरान जेल में रहने के समय उन्हें विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियां हुई. जेल से निकलने के बाद वह 1910 में चंदननगर होते हुए पांडिचेरी चले गये. पांडिचेरी में उन्होंने अपने को सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह अलग करते हुए आध्यात्मिक साधना और लेखन तक सीमित रखा.
पांडिचेरी में 1914 में मीरा नामक फ्रांसीसी महिला की अरविंद से पहली बार मुलाकात हुई जिन्हें बाद में अरविंद ने अपने आश्रम के संचालन का पूरा भार सौंप दिया. अरविंद और उनके सभी अनुयायी उन्हें आदर के साथ ‘मदर’ कहकर पुकारने लगे.
अरविंद का देहांत पांच दिसंबर 1950 को हुआ. बताया जाता है कि निधन के बाद चार दिन तक उनके पार्थिव शरीर में दिव्य आभा बने रहने के कारण उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया और अंतत: नौ दिसंबर को उन्हें आश्रम में समाधि दी गयी. 

AAJ TAK: India's Best Channel for Breaking News from India, Latest ... 

नई दिल्ली, 14 अगस्त 2010

गाजियाबाद और आजादी

हिंडन किनारे लड़ी गई थी आजादी की पहली जंग नवभारत टाइम्स
हिंडन नदी के पुल से गाजियाबाद की ओर जाने वाली सड़क पर एक कब्रिस्तान है, जहां एक दर्जन अंग्रेज सिपाहियों के शवों को दफनाया गया है। इतिहासकारों के मुताबिक मेरठ में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के खिलाफ सेना को अंग्रेजों ने दिल्ली से भेजा था। जैसे ही अंग्रेजी सेना हिंडन नदी के तट पर पहुंची अचानक क्रांतिकारियों ने उन्हें रोक लिया। उमराव सिंह, माखन सिंह, जय सिंह, दौलत सिंह, सुमेर सिंह, चंदन सिंह, दलेल सिंह से नेतृत्व में देशभक्त दो दिनों तक लड़ते रहे
हौसले और एकजुटता की मिसाल बन गए थे 5 गांव नवभारत टाइम्स
गाजियाबाद के मुरादनगर ब्लॉक में पांच ऐसे गांव हैं, जहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेज सिपाहियों की नाक में दम कर दिया था। अंग्रेजों ने इन गांवों के लोगों पर बेइंतिहा जुल्म किए, मगर न तो ये टूटे और न ही झुके।गाजियाबाद 1976 से पहले तक मेरठ जिले का हिस्सा था। 1857 से यहां जो आजादी की बयार चली, 1947 तक चलती रही। मुरादनगर ब्लॉक में हिंडन किनारे बसे पांच गांव ग्यासपुर, कुम्हेड़ा, सुहाना, खिंदौड़ा और भनेड़ा के लोग भी स्वतंत्रता ...