Thursday, December 30, 2010

श्रीअरविन्द के मार्ग का चयन करना चाहिए

युग द्रष्टा महर्षि अरविन्द 
हनुमान सरावगी 
महर्षि अरविन्द एक चैतन्य और शाश्वत विचार धारा के प्रवर्तक केरूप में हमारे बीच विद्यमान हैं. आवश्यकता है उस विचारधारा को अंगीकार करने की, किन्तु हम अपनी परिधि में अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं को सर्वदा अनदेखा कर जाते हैं, या समझ कर भी हम सहज मार्ग अपनाने का प्रयास करते हैं. हम कड़ा परिश्रम कर ऊंचाई की और बढ़ना नहीं चाहते हैं, जिसके परिणाम स्वरुप हम सत्य,प्रेम, निष्ठा या जीवन के उन मूल्यों को पा नहीं पाते जो हमारी परिधि में उपलब्ध हैं. हमें अपना जीवन सहज और कर्मप्रधान बनाने के लिए श्री अरविन्द के मार्ग का चयन करना चाहिए, क्योंकि तात्कालिक या तत्क्षण लाभ के प्रति मोह विश्व में विभेद और घृणा पैदा कर रहा है. यह तथ्य महर्षि अरविन्द ने कई बार अपने व्याख्यानों में रखा है और वह राह दिखलाने की कोशिश की है, जो सहज तो नहीं है किन्तु जब मंजिल मिल जाती है, तब शाश्वत आनंद का सागर ह्रदय में लहराता है. वह सुख की पूंजी नश्वर धन से अधिक आत्मतुष्टि देती है. 
हम कह सकते हैं कि महर्षि अरविन्द की बतायी राह वह राह है, जो आदमी के जीवन को सार्थक बनाती है औरउसे सद्कर्म का सन्देश देती है. 
महर्षि ने कर्म के दोनों रूपों को भी स्पष्ट किया है. सद्कर्म औरदुष्कर्म को परिभाषित कर बहुत साड़ी द्विविधाओं से समाज को मुक्ति दिलाने का मार्ग बतलाया है. सच बोलना शाश्वत धर्म है. लेकिन सच बोलने की भी प्रक्रिया है. कौन सा सच किसके सामने कब बोलना चाहिए, यह हम तभी अनुभव कर सकते हैं, जब हम वेश्लेषण करने की क्षमता रखते हैं. गलत स्थान या गलत समय पर बोला गया सत्य भी दुष्कर्म या पाप का करण बन सकता है. इसी प्रकार झूठ बोलना सदा पाप होता है, लेकिन यह भी आवश्यकता पड़ने पर सद्कर्म या पूनी कर्म को प्रेरित कर सकता है. गीता में श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मरे जाने की झूठी जानकारी द्रोणाचार्य को दिलवाकर, सत्य और धर्म की विजय को सुनिश्चित किया. महर्षि अरविन्द के दर्शन का अध्ययन और ज्ञान प्राप्त कर सद्कर्म की पहचान की जा सकती है.
महर्षि अरविन्द व्यक्ति को व्यावहारिक संवेदनशीलता से पुष्ट करना चाहते थे. एक बार महर्षि ने प्रश्न किया था," आदमी इतना कुछ पा चुका है, और उसे क्या पाना है? " उन्होंने स्वयं उत्तर दिया," प्रेम.' वह जानते थे कि लोग प्रेम का स्वरुप स्वार्थ में निहित कर किसी से प्रेम जताते हैं. यह प्रेम, प्रेम नहीं होता है. स्वार्थ-सिद्धि का कर्णं बन जाता है. महर्षि ने प्रेम की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया है," प्रेम नैसर्गिक होता है और प्रेम से समाज में प्रेम बढ़ता है. प्रेम सदा सर्वहित में होता है. वह मनुष्यता के गुणोंऔर विशिष्टताओं को स्थापित करता है.
श्री अरविन्द ने अपनी एक कविता में कहा है," शैशव काल में शिशु ईश्वर के तुली होता है." एक बालक का माता से प्रेम, निच्छल हॉट है. उसकी चंचलता में भी आनन्द की सुगंध होती है. उसकी हठ लीला भी आनंद प्रदान करती है. वास्तिविकता में बालक, मां,ह्रदय, प्राण और आत्मा से नि:स्वार्थ होता है. लेकिन धीरे-धीरे वही बालक जब बड़ा होता है, उसके हर कदम स्वार्थ की ढलान पर चल पड़ते हैं, और अन्ततोगत्वा ईश्वर या ईश्वरीय गुणों या प्राकृतिक गुणों से दूर हट कर अपनी मुख्य धारा से कट जाता है. महर्षि का सन्देश है कि हर आदमी अनेकानेक जटिलताओं और दु:खों से घिर कर अपना जीवन स्वयं कष्टमय बना लेता है.
महर्षि ने शक्ति और सत्ता की व्याखा करते हुए कहा है कि जब कोई सत्ता युद्ध में जीत जाती है, तो वह उन सभी मानवीय पक्षों पर विचार नहीं करती है जहाँ वह हार चुकी होती है और अल्प्नी कमजोरियों की उपेक्षा कर जाती हैं. सत्ता या शक्ति दोनों के दो भेद हैं-शाश्वत सत्ता और भौतिक सत्ता एवं शाश्वत शक्ति और भौतिक शक्ति. सत्य,प्रेम,स्नेह, सद्ब्याव्हार की सत्ता शाश्वत होती है और स्वार्थ, हिंसी, लिप्सा, लाभ की सत्ता सदैव भौतिक होती है, जो असंतोष एवम दुःख को जन्म देती है.
महर्षि ने कहा है कि जब मां का जानवर धर्म की लगाम से नियंत्रित हो कर समाज में आगे बढ़ता है, तो वह कृष रूप हो जाता है. सार्वभौमिक हो जाटा है. 
महारसी अरविन्द का सन्देश है कि लोग अपनी मंजिल और उस तक पहुँचने की राह सत्य, धर्म, मानवीय आचरण और विवेक से निश्चित करे औरहर कदम पर अपनी आप्मा को जागृत रखे. जिसकी आत्मा अलौकिक नहीं होगी, उसमे सही और गलत का निर्धारण करने की क्षमता नहीं हो सकती. आत्मा उसी की आलोकित होती है स्वार्थ से ऊपर उठ कर सद्कर्म करता है. मानव अपना प्रयास अपने तक संकुचित नहीं रखे. अपने समस्त प्रयास भूतकाल के अनुभव, वर्तमान की आवश्यकता और भविष्य में उनके प्रभव को देख कर करें, जिससे कि प्रयास सदैव सार्वभौम हो. मानव का आह्वान करते हुए महर्षि अरविन्द ने आनद से आनान्दित होने के लिए कहा है, जो स्थाई उपलब्धि है और इससे नैसर्गिक सुखों की अनुभूति होती है. महर्षि ने मानव-मानव में बढ़ते भेद और दूरियों को परखा और कहा है कि मानव का जन्म निश्चित कर्म के लिए होता है, अपने कर्म के माध्यम से अपनाव्यक्तित्त्व बनाने के लिए नहीं. व्यक्तित्व निर्माण की स्वार्थपरक प्रक्रिया ने ही मानव मानव के बीच विभेद पैदा किया है. 
महर्षि के विचारों से स्पष्ट है कि मानव का हर प्रयास "बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय" पर आधारित होना चाहिए. हर प्रयास समाज के हित में होना चाहिए. नि:स्वार्थ मानव के समाज में ही शाश्वत आन्नद का प्रवाह संभव है. ऐसे ही समाज में कृष्ण की बांसुरी की सुरीली तान सर्वदा अव्गूंजित हो सकती है. 
महर्षि ने कहा है, " छोटी राह से प्राप्त भौतिक सम्पदा सुख से अधिक दुःख देती है, जबकि शाश्वत सुख के लिए कठिन और लम्बी राह पर चलना होता है. जो सच्चा सुख चाहते हैं उनको उसी कठिन और लम्बी राह पर चलने की अनिवार्यता है. महर्षि अरविन्द का दिस्ब्य सन्देश है कि सद्कर्म की राह पर चलो और एक दिन कृष्ण के विराट स्वरुप में समाहित हो जाओ, अर्थात जिसकी ऊर्जा से यह शरीर कार्य करता है, मृत्यु के बाद उसी ऊर्जा के स्वामी से जा मिलता है. यह मिलन मात्र कर्म मार्ग से ही संभव है." Posted by hpsarawgiwrites

Talk by Dr. Archana Modi at Noida Branch

From sri aurobindo society noida branch sriaurobindosocietynoida@gmail.com to "Tusar N. Mohapatra" tusarnmohapatra@gmail.com date 28 December 2010 18:18 subject Schedule of Activities at Sri Aurobindo Society, Noida Branch in January, 2011.
Sir, Pranaam. We enclose Schedule of Activities at Sri Aurobindo Society, Noida Branch in January, 2011 with request to attend the same with your family members and friends.
Sri Aurobindo Society, Noida Branch's events/programmes can also be viewed at:- http://www.parichowk.com/events.aspx or 


Your kind presence with family members and friends in the following programms is also requested.

(a) New Year Meditation on Saturday, 1st January, 2011 from 9.30AM to 10AM.
(b) Talk by Dr. Archana Modi, Chairman, Sri Aurobindo Society, Mahoba Branch on 'Jeevan Mein Adhyatimikta Kaa Mahatav' on Thursday, 30th December, 2010 from 5PM to 6PM.
WISHING YOU ALL A VERY HAPPY NEW YEAR.
Let the birth of the New Year
be the new birth of our consciousness.
- The Mother
REGARDS.
In the service of The Mother,
Suresh Chand Gupta
Executive Secretary
Sri Aurobindo Society, Noida Branch
Sri Aurobindo Bhavan,
C-56/36, Sector-62, Noida-201301 (U.P.)
Tel:-0120-3263313, (M) 09818636362

Thursday, December 09, 2010

6th Anniversary of Sri Aurobindo Bhavan's dedication to public at Noida

From sriaurobindosociety noidabranch sriaurobindosocietynoida@gmail.com to "Tusar N. Mohapatra" tusarnmohapatra@gmail.com date 1 December 2010 13:35
SAS/NB/Prog/21/10                                                                                           30th November, 2010 INVITATION
Sub:    Meeting with Members to be addressed by Shri Vijay Poddar Ji, Chairman, Sri Aurobindo Society, Hindi Zone.

On the occasion of 6th Anniversary of ‘Sri Aurobindo Bhavan’s Dedication for Public’ at Noida, a meeting has been scheduled as per details given below: 

Day                                         : Saturday
Date & Time              : 11th December, 2010 – 5PM to 7PM
Venue                         : Sri Aurobindo Bhavan, C-56/36, Sector 62, Noida.

The Meeting will be addressed by Shri Vijay Poddar Ji, Chairman, Sri Aurobindo Society, Hindi Zone about the Society’s activities viz-a-viz members participation therein.  After the address there will be an interactive session. The meeting will be followed by High Tea.                                  
All are requested to participate in the above programme with their family members and friends.

There is no greater pride and glory than to be  a perfect instrument of the Master
    -Sri Aurobindo

Suresh Chand Gupta
Executive Secretary
0120-3263313 

PLANNED ACTIVITIES FOR DECEMBER, 2010

Time
Days
Programme

7AM to 8AM            

MON. to SAT

Free Yogasan & Pranayam  by  Acharya V. N.  Pandey

9AM to 9.30AM

MON to SAT

‘Our Prayer’ & Meditation

9.30AM to 10.30AM

MON, WED, FRI

Yogasan & Pranayam by Ms Smiriti Batra
(For Ladies)

10AM to 11AM         

Every Sunday             

Collective Meditation; Spiritual Reading and  Bhajans

11AM to 01PM          
Every Saturday/
Sunday                   
Discussions on ‘GITA’ Led by Sh. Viswa Mohan Tiwari,
Air Vice Marshal (Retd.)

11AM to 01PM

Every Sunday

Free Consultation and Eye Check-up by Dr. P.S. Chauhan.

3.30 PM to
5.30 PM
MON to FRI
 Free Acupressure Treatment by Sh. G. P.  Shukla 


10AM to 11AM

5th Dec. ‘10
Sunday

Sri Aurobindo’s Mahasamadhi Day -
Meditation; Spiritual reading
5PM to 7PM
11th Dec. ‘10
Saturday
6th Anniversary of Dedication for Public – Sri Aurobindo Bhavan:  Meeting with Members to be addressed by Shri Vijay Poddar Ji, Chairman, Sri Aurobindo Society, Hindi Zone about Society’s Activities viz-a-viz Members participation therein followed by interactive session.

10AM to 5PM

18th and 19th Dec. 2010
Saturday & Sunday

UP & Uttrakhand’s State Committee Meeting; Sri Aurobindo Society Hindi Zone Meeting & Press Meet/Conference
6PM to 7PM
25th Dec.’10
Saturday
Bhajan / Sangeet / CD - The Mother on Sri Aurobindo

Note:
 i)   Meditation Hall opens everyday from 7AM to 7PM
ii)   Library is open every day from 9AM to 6PM
iii)   SABDA publications and products from Auroshikha & Cottage Industry,                  Pondicherry are available at the Branch  everyday from 10AM to 6PM.

S.C. Gupta
Executive Secretary
Phone: 0120-3263313

Thursday, November 18, 2010

साधना एवं सिद्धि: SamayLive - 18 Nov 2010

साधना एवं सिद्धि  महर्षि अरविन्द ने अपनी पूर्ण योग रूपी सर्वांगपूर्ण पद्धति में बताया है कि जगत् और जीवन से बाहर निकलकर स्वर्ग या निर्वाण योग का लक्ष्य नहीं है, जीवन एवं जगत् को परिवर्तित करना ही पूर्ण योग है। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
साधक निम्न प्रकृति की सभी क्रियाओं, विभिन्न द्वन्द्वों, अविद्या के आक्रमण और अपने अज्ञान को इस दृष्टि से देखता है और उसे दूर करने हेतु प्रयत्न करता है। इस शुद्धि के फलस्वरूप मन की शांति, चित्त की स्थिरता, प्राण की एकाग्रता, ह्मदय की तन्मयता और विकारों से निष्कृति प्राप्त होती है, जो पूर्ण योग की आधार भूमि है। ऐसे शुद्ध, शांत, चंचल और नीरव आधार पर ही तो भागवत आनन्द, प्रेम, ज्ञान का अवरोहण संभव है। सर्वांगपूर्ण योग पद्धति के चार प्रमुख अंग हैं- शुद्धि, मुक्ति, सिद्धि और भुक्ति। साधना की प्रथम अनिवार्य आवश्यकता है-शुद्धि। इसका क्षेत्र अति विशाल है। यह अंत: और बाह्य दोनों के परिशोधन का प्रयास है। इससे जीवन को एक काल तक परिवर्तित भी कर लेते हैं। पूर्ण योग में शरीर ही नहीं मन, प्राण, अंत:करण अर्थात् सत्ता के समस्त अंगों का परिष्कार होता है। शुद्धि की शुरुआत होती है।

इसका दूसरा अंग है- मुक्ति। इसका तात्पर्य कहीं अन्य लोक-लोकान्तर में न पलायन है, न ही समस्त स्थूल क्रिया-कलापों अथवा प्रकृतिगत चेष्टाओं का परित्याग कर निर्वाण प्राप्त करना। यह आत्मा का, विभिन्न वासनाओं, शरीर बंधन एवं आकर्षणों से पहले हो जाना है। इसके दो पद हैं-त्याग और ग्रहण। इसमें एक है निषेधात्मक और दूसरा विधेयात्मक। प्रथम का अर्थ है, सत्ता की निम्न प्रकृति के बंधनों, आकर्षणों से छुटकारा। द्वितीय भावनात्मक पक्ष का तात्पर्य है- उच्च स्तर आध्यात्मिक सत्ता में समाहित होना। संसार भगवान् का लीला क्षेत्र है। इसका पलायन करके कोई भी यथार्थ में इस योग का योगी नहीं बन सकता है।
वासना और अहंता ही हैं अज्ञान की पिटारियां। इनसे ही छुटकारा पाना है। दूसरे शब्दों में, भगवान् के समान बनना ही मुक्ति का सम्पूर्ण एवं समग्र आशय है। शुद्धि एवं मुक्ति दोनों  'सिद्धि"  की पहले की अवस्थाएं हैं। पूर्णयोग में सिद्धि का अर्थ है भागवत् सत्ता की प्रकृति के साथ एकत्व की प्राप्ति। मायावादी सत्ता के सर्वोच्च सत्य निर्विकार निर्गुण एवं आत्म सचेतन ब्राहृ है। अतएवं आत्मा की शुद्ध, निर्विकार शान्ति एवं चेतनता में विकसित एकाकार होना ही उसकी सिद्धि है। सर्वांगपूर्ण योग में सिद्धि का तात्पर्य है-एक ऐसी दिव्य आत्मा और दिव्य कर्म को प्राप्त करना, जो विश्व में दिव्य संबंध एवं दिव्य कर्म का खुला क्षेत्र प्रदान करे। इसका समग्र अर्थ है- सम्पूर्ण प्रकृति को दिव्य बनाना तथा उसके अस्तित्व और कर्म की समस्त असत्य गुत्थियों का परित्याग।
भुक्ति का तात्पर्य श्री अरविन्द की दृष्टि में है- अनासक्त भाव से उपभोग। जीवन में दिव्य पूर्णता का अवतरण करना, सम्पूर्ण जीवन को आध्यात्मिक शक्ति का क्षेत्र मानकर दिव्य भोग करना ही भुक्ति का आंतरिक सार है। तभी सिद्धि संभव हो सकेगी, देव-मानव अतिमानव बन सकेगा। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार

Monday, November 15, 2010

Talk by Dr. D.N. Dani at Sri Aurobindo Bhavan, Noida on 20th November

From sriaurobindosociety noidabranch sriaurobindosocietynoida@gmail.com to "Tusar N. Mohapatra" tusarnmohapatra@gmail.com date 15 November 2010 14:24 subject A talk on 'INTEGRAL EDUCATION' by Dr. D.N. Dani, Chairman, Sri Aurobindo Society, Udaipur Centre.
Sir,
Sri Aurobindo Society, Noilda Branch is organizing a talk on 'Integral Education' by Dr. D.N. Dani, Chairman of Sri Aurobindo Society, Udaipur Centre on Saturday, 20th November, 2010.  Your kind presence in that alongwith family and friend is requested. REGARDS. In the service of The Mother, Suresh Chand Gupta
Executive Secretary
Sri Aurobindo Society, Noida Branch
Sri Aurobindo Bhavan,
C-56/36, Sector-62, Noida-201301 (U.P.)
Tel:-0120-3263313, (M) 09818636362

SAS/NB/Prog/RD/10  15th November, 2010 INVITATION Sub: Talk on ‘Integral Education’
Sri Aurobindo Soceity, Noida Branch is organizing a Talk on ‘INTEGRAL EDUCATION’ by Dr. D.N. Dani, Chairman, Sri Aurobindo Society, Udaipur Centre and former Vice-Principal, Vidyabhavan Shikshak Mahavidyalaya, Udaipur as per details given below:-
Day & Date:   Saturday, 20th November, 2010
Time:              5.30PM to 7.00PM
Place:              Sri Aurobindo Bhavan,                                                                         C-56/36, Sector 62,                                                                         Noida.                                     
All are requested to participate in the above programme  with family members and friends.

                                    ‘Sincerity is the key of the divine doors’
-         The Mother 

Suresh Chand Gupta
Executive Secretary
Phone: 0120-3263313    
PLANNED ACTIVITIES FOR NOVEMBER, 2010

Days
Programme

Time

MON. to SAT

Free Yogasan & Pranayam  by  Acharya V. N.  Pandey

7AM to 8AM            

MON to SAT

‘Our Prayer’ & Meditation

9AM to 9.30AM

MON, WED, FRI

Yogasan & Pranayam by Ms Smiriti Batra
(For Ladies)

9.30AM to 10.30AM

Every Sunday             

Collective Meditation; Spiritual Reading and  Bhajans


10AM to 11AM         

Every Saturday/
Sunday                      

Discussions on ‘GITA’ Led by Sh. Viswa Mohan Tiwari,
Air Vice Marshal (Retd.)


11AM to 01PM          

Every Sunday

Free Consultation and Eye Check-up by Dr. P.S. Chauhan.


11AM to 01PM

MON to FRI

Free Acupressure Treatment by Sh. G. P.  Shukla 


3.30 PM to
5.30 PM

17th Nov. ‘10
Wednesday

Mother’s Mahasamadhi Day -
Meditation

6PM to 6.30PM

20th Nov. ‘10
Saturday

Talk on ‘Integral Education’ by Dr. D.N. Dani, Chairman, Sri Aurobindo Society, Udaipur Centre and former Vice-Principal, Vidya Bhawan Shikshak Mahavidyalaya, Udaipur

5.30PM to 7PM

24th Nov. ‘10
Wednesday

Darshan Day – Siddhi Day
CD on  ‘Sri Aurobindo – A Life Divine’ &
Meditation

6PM to 7PM

27th Nov. ‘10
Saturday

Bhajan / Sangeet / CD-Bhagwat Muharat

6PM to 7PM

Note:
 i)   Meditation Hall opens everyday from 7AM to 7PM
ii)   Spiritual Library is open every day from 9AM to 6PM
iii)   SABDA publications and products from Auroshikha & Cottage Industry,                  Pondicherry are available at the Branch  everyday from 10AM to 6PM.

S.C. Gupta
Executive Secretary

Friday, November 12, 2010

इंदिरापुरम से एयरपोर्ट

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो : गाजियाबाद के इंदिरापुरम के लोग अब चौबीस घंटे इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जा सकेंगे। दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) ने बृहस्पतिवार को विशेष 'एयरपोर्ट एक्सप्रेस बस सेवा' प्रारंभ की है, ...

इंदिरापुरम के जयपुरिया मॉल से बस का संचालन होगा। यहां से शुरू होकर इंदिरापुरम, नोएडा सेक्टर-62, 23/54, 12/22, 21, 10, 19, 27, डीएनडी फ्लाईओवर, आश्रम, लाजपत नगर, एम्स, अरबिंदो मार्ग, हौज खास (ग्रीन पार्क मेट्रो स्टेशन), आईआईटी गेट, जेएनयू, बसंत विहार, वसंत विलेज, एनएच-8, महिपालपुर, रेडिशन होटल होते हुए आईजीआई एयरपोर्ट टी-3 पर सेवा समाप्त होगी। यहीं से बसों की रवानगी भी होगी। जयपुरिया मॉल से सुबह 6.55 बजे से 9.55 बजे तक एक-एक घंटे की फ्रिक्वेंसी होगी, इसके बाद 30 मिनट की बस सेवा होगी। रात 12 बजे से सुबह 6.25 बजे तक एक घंटे की फ्रिक्वेंसी रहेगी।

Saturday, August 21, 2010

सिवनी में सुभद्रा कुमारी चौहान और महर्षि अरविन्द समारोह

सुभद्रा कुमारी चौहान और महर्षि अरविन्द समारोह 14-15 अगस्त, 2010 को सिवनी में
साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल के तत्वावधान में 14-15 अगस्त, 2010 को सिवनी में सुभद्रा कुमारी चौहान और महर्षि अरविन्द समारोह आयोजित किया जा रहा है।

साहित्य अकादमी के निदेशक प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल ने बताया कि भारतीय स्वतंत्रता और उसके बाद के जनमानस को अपनी कविता से आंदोलित करने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान और महर्षि अरविन्द ऐसे तत्वदर्शी हैं, जिन्होंने भारतीय साहित्य को कई रूपों में प्रभावित किया है। अकादमी चाहती है कि यह प्रभाव जनता के सामने आये। अत: 14 अगस्त, 2010 की शाम 6.30 बजे सुभद्रा कुमारी चौहान का राष्ट्रीय, साहित्यिक एवं सामाजिक प्रदेय विषय पर प्रख्यात विद्वान डॉ. वीरेन्द्र नारायण यादव (छपरा-बिहार) की अध्यक्षता में विमर्श होगा। मुख्य अतिथि श्री राजेश त्रिवेदी, अध्यक्ष नगर पालिका परिषद, सिवनी रहेंगे। डॉ. आर्या प्रसाद त्रिपाठी (चित्रकूट), डॉ. सत्येन्द्र शर्मा (सतना), डॉ. राजकुमार डफू (जबलपुर) उपर्युक्त विषय पर वक्तव्य देंगे।

15 अगस्त, 2010 की सुबह 10 बजे सुभद्रा कुमारी चौहान की कार दुर्घटना स्थल पर पुष्पांजलि का कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा। इसी दिन शाम 6.30 बजे भारतीय दार्शनिक परम्परा एवं साहित्य में महर्षि अरविन्द का प्रदेय विषय पर आख्यान का कार्यक्रम स्थानीय विधायक माननीया श्रीमती नीता पटेरिया के मुख्य आतिथ्य में एवं डॉ. सावित्री सिन्हा (जबलपुर) की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में डॉ. दीनानाथ शुक्ल (जबलपुर), डॉ. मीनाक्षी स्वामी (इंदौर), डॉ. प्रदीप खरे (भोपाल) उपर्युक्त विषय पर व्याख्यान देंगे। स्थानीय समन्वयक के रूप में डॉ. अर्चना चंदेल कार्य करेंगी।

साहित्य अकादमी के निदेशक प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल ने सभी बुद्धिजीवियों, लेखकों, चिंतकों-विचारकों, शोधार्थियों और पाठकों से अपील की है कि इस समारोह में पधारकर अवश्य लाभ लें। उमा भार्गव

Sunday, August 15, 2010

योग और अध्यात्म में रम गए अरविंद

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान प्रखर राष्ट्रवाद की भावना से जनता को जबरदस्त रूप से आंदोलित करने वाले अरविंद जब इस बात पर पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि अब स्वाधीनता का उद्देश्य उनके बगैर भी पूरा हो जाएगा तब वह योग और अध्यात्म में रम गए.
अरविंद आश्रम से निकलने वाली पत्रिका ‘कर्मधारा’ के सह संपादक त्रियुगी नारायण के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि श्री अरविंद जब अलीपुर जेल में थे तब उन्हें साधना के दौरान भगवान कृष्ण के दर्शन हुए जिन्होंने उनसे कहा कि अब स्वाधीनता का कार्य तुम्हारे बगैर भी पूरा हो जाएगा. इस प्रकार वह योग और अध्यात्म में रम गए.
नारायण ने कहा कि उन पर जेल में स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान का भी गंभीर असर पड़ा. हालांकि उनमें योग के प्रति अनुराग पहले से पनप रहा था.
प्रकृति में गहन विश्वास करने वाले महर्षि अरविंद मानते थे कि मानव का विकास अतिमानव के रूप में करना है जहां वह विभिन्न बंधनों से मुक्त होगा.
अरविंद घोष का जन्म कलकत्ता में 15 अगस्त 1872 में हुआ था. उनके पिता डॉ. कृष्ण धन घोष अंग्रेजी शिक्षा के कट्टर समर्थक थे इसलिए उन्होंने अरविंद को सात साल की उम्र में उनके भाइयों के साथ ब्रिटेन भेज दिया. ब्रिटेन में अरविंद ने बेहद अभाव में बचपन गुजारा क्योंकि उनके डॉक्टर पिता अक्सर अपने बच्चों को मासिक खर्च भेजना भूल जाते थे.
ब्रिटेन में शिक्षा के बाद वह पिता की इच्छा पूरी करने के लिए आईसीएस की परीक्षा में बैठे. लेकिन दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि के दौरान उनके दिमाग में यह बात बैठ गयी कि उन्हें ब्रिटिश सरकार की सेवा नहीं करनी है और वह घुड़सवारी की परीक्षा में जानबूझकर शरीक नहीं हुए जिससे वह ब्रिटिश सरकार की प्रशासनिक सेवा में जाने से बच गये.
अरविंद 1893 में भारत वापस लौट आये. उनके पहुंचने से पहले एक बहुत बड़ा हादसा यह हुआ कि एजेंट ने उनके पिता को यह गलत सूचना दे दी कि जिस जहाज से अरविंद मुम्बई आ रहे थे वह पुर्तगाल में डूब गया. इस सदमे को उनके पिता बर्दाश्त नहीं कर पाए और चल बसे.
भारत पहुंचने पर अरविंद को बड़ौदा स्टेट की प्रशासनिक नौकरी मिली. वह विभिन्न प्रशासनिक विभागों के अलावा बड़ौदा कालेज में अंग्रेजी भी पढ़ाते थे. उनके शिष्यों में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जैसे कुछ योग्य शिष्य शामिल थे. इसके साथ ही वह हिंदी, संस्कृत और बांग्ला का गहन अध्ययन करने लगे जिनसे वह इंग्लैंड में वंचित हो गए थे. उन्होंने 1906 तक बड़ौदा स्टेट की नौकरी की. नौकरी के दौरान ही वह पर्दे के पीछे से स्वतंत्रता आंदोलन की राजनीति में भी दिलचस्पी लेने लगे.
स्वतंत्रता आंदोलन में भी उनकी अहम भूमिका रही. इतिहास के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डा पी पी गुप्ता बताते हैं, ‘बड़ौदा से कोलकाता आने के बाद महर्षि अरविंद आजादी के आंदोलन में उतरे. कोलकाता में उनके भाई बारिन ने उन्हें बाघा जतीन, जतीन बनर्जी और सुरेंद्रनाथ टैगोर जैसे क्रांतिकारियों से मिलवाया. उन्होंने 1902 में उनशीलन समिति ऑफ कलकत्ता की स्थापना में मदद की. उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ कांग्रेस में गरमपंथी धड़े की विचाराधारा को भी हवा दी.’
डा गुप्ता के अनुसार, अरविंद ने बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन में बढ़चढ़ हिस्सा लिया और इसके लिए लोगों को एकजुट करने के लिए उन्होंने राखियां बंधवाने का कार्यक्रम चलाया एवं हिंदू मुस्लिम एकता की अच्छी मिसाल पेश की.’ अरविंद घोष के विचार बहुत ही क्रांतिकारी थे. उन्होंने लिखा है, ‘राजनीतिक स्वतंत्रता राष्ट्र की प्राण वायु है. राजनीतिक स्वतंत्रता के लक्ष्य के बगैर सामाजिक सुधार, शैक्षणिक सुधार, औद्योगिक विस्तार और नस्ल का नैतिक सुधार बहुत बड़ी लापरवाही और व्यर्थ है.’
अरविंद का नाम 1905 के बंगाल विभाजन के बाद हुए क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ा और 1908-09 में अलीपुर बम कांड मुकदमा चला. इस दौरान जेल में रहने के समय उन्हें विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियां हुई. जेल से निकलने के बाद वह 1910 में चंदननगर होते हुए पांडिचेरी चले गये. पांडिचेरी में उन्होंने अपने को सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह अलग करते हुए आध्यात्मिक साधना और लेखन तक सीमित रखा.
पांडिचेरी में 1914 में मीरा नामक फ्रांसीसी महिला की अरविंद से पहली बार मुलाकात हुई जिन्हें बाद में अरविंद ने अपने आश्रम के संचालन का पूरा भार सौंप दिया. अरविंद और उनके सभी अनुयायी उन्हें आदर के साथ ‘मदर’ कहकर पुकारने लगे.
अरविंद का देहांत पांच दिसंबर 1950 को हुआ. बताया जाता है कि निधन के बाद चार दिन तक उनके पार्थिव शरीर में दिव्य आभा बने रहने के कारण उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया और अंतत: नौ दिसंबर को उन्हें आश्रम में समाधि दी गयी. 

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नई दिल्ली, 14 अगस्त 2010