Sunday, August 09, 2009

विश्व-नीड़ में मानवता का सौरभ वितरण करना जीवन का ध्येय बने

Sāhitya Mein Mūlyabodh (साहित्य में मूल्यबोध)
from Dr. Harekrishna Meher by Dr. Harekrishna Meher - डॉ. हरेकृष्ण मेहेर

दृढ़ मनोबल, आत्म-विश्वास एवं सदाचार द्वारा समाज में स्वच्छ परिवेश की सर्जना की जा सकती है । देश को समृद्ध और सुसंस्कृति-सम्पन्न करने में नारी-पुरुष सभीको राष्ट्रीय कर्त्तव्य निभाना है । भारतवर्ष को एक महनीय महान् देश के रूप में सुप्रतिष्ठित करने के लिये मन, वचन और कर्म का त्रिवेणी-संगम आवश्यक है । केवल वाक्य-वीर न होकर धर्म-वीर एवं कर्म-वीर के रूप में अपने को प्रतिपादन करने से मनुष्य-जन्म की सार्थकता बनी रहेगी ।

वर्त्तमान के कम्प्युटर-युग में सारा विश्व एक परिवार-सा बन गया है । महापुरुषों की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’- भावना साकार होने लगी है । इसी परिवेश में समाज और मातृभूमि के उत्कर्ष हेतु साहित्यकारों के युगानुरूप रचनात्मक अवदान सर्वथा स्वागतयोग्य एवं अपेक्षित हैं । प्रतिभाशाली व्यक्तिगण विविध क्षेत्रों में कृतित्व अर्जन करके देश के गौरव बढ़ायें । कलम और कदम साथ–साथ आगे चलें । विश्व-नीड़ में मानवता का सौरभ वितरण करना जीवन का ध्येय बने । विश्वबन्धुता, मैत्री, प्रेम और शान्ति की पावन धारा सभीके हृदय को रसाप्लुत एवं आनन्दमय करे ।

" शान्ति-मन्त्रो जयतु नितरां सौम्य-गाने, प्रेम-गङ्गा वहतु सुजला ऐक्य-ताने । निवसतु सुखं विश्व-जनतालीयतां ननु दनुज-घनता ; चूर्णय त्वं वैर-वर्वर-पर्वतम् । प्राणिनां संवेदना जायतां सद्‌भावनाभातु सत्यं सुन्दरं शिव-शाश्वतम् । भारतम्, भ्राजतां नो भारतं प्रतिभा-रतम् ॥"

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