Saturday, May 30, 2009

श्रीअरविंद की दिव्य दृष्टि को समझने की दिशा में कुछ भूमिका

महान योगी श्री अरविन्द
खरीदें मनोज दास
नेशलन बुक ट्रस्ट,इंडिया
प्रकाशित: जनवरी ०१, १९९९
सारांश:
एक बार एक विशिष्ट व्यक्ति ने श्री अरविन्द जी की जीवनी लिखने का निश्चय किया। यह बात उन्हें बताई तो उत्तर दिया - मेरी जीवनी कोई क्या लिखेगा? उसमें बाह्य दृष्टि से देखने लायक जीवन कुछ नहीं।
पर सरसरी तौर पर देखें तो श्री अरविन्द जी का जीवन इतना घटनापूर्ण है कि उस पर विराट जीवनी लिखी जा सकती है। शैशव और किशोरावस्था इंग्लैण्ड में बिताकर जब वे भारत लौटे तब तक वे 20 वर्ष के थे। यह बात 1893 की है। बाद में तेरह साल वे बड़ौदा में रहे। 1906-1909 सिर्फ तीन वर्ष प्रत्यक्ष राजनीति में रहे। इसी में देश भर के लोगों के स्नेह के भाजन बन गये। इसकी तुलना नहीं की जा सकती। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस स्मृति चारण करते हुए लिखते हैं - "जब मैं 1913 में कलकत्ता आया, अरविंद जी तब तक किंवदंती पुरुष हो चुके थे। जिस आनंद औक उत्साह के साथ लोग उनकी चर्चा करते शायद ही किसी की वैसे करते।" इस महान पुरुष के संबंध में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। ज्यादातर उनमें सच हैं।
जीवन का लक्ष्य, पृथ्वी पर दिव्य जीवन की स्थापना कैसे होगी, इस सब के बारे में उन्होंने जो कुछ लिखा है, कई लोग उसे कठिन तत्त्व मानते है। परन्तु आध्यात्मिक तत्त्व को समझने की शक्ति भारतीय चेतना का सहज गुण है। हालांकि कि इस पुस्तक में उनका योग और दर्शन पर जितना लेखन है, उसे भी सरल ढंग से प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है। आशा है श्री अरविंद की दिव्य दृष्टि को समझने की दिशा में कुछ भूमिका के रूप में पाठकों की मदद कर सकेगी। मुख्र्य पृष्ठ

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