Monday, December 22, 2008

एक था बाहरी ताकतों से खतरा और दूसरा सांप्रदायिकता की चुनौती

महर्षि अरविंद ने किया था खतरे से आगाह
जागरण Dec 04, 02:37 pm नई दिल्ली।

आजादी के आंदोलन में एक समय अपने उग्र विचारों के कारण बेहद लोकप्रिय नेता और बाद में आध्यात्म के क्षेत्र में जाने वाले महर्षि अरविंद ने देश की आजादी के समय ही आगाह कर दिया था कि भारत की एकता को बाहरी ताकतों से खतरा है।

विशेषज्ञों के अनुसार अरविंद ने भले ही आध्यात्म के क्षेत्र में आने के बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था, लेकिन उस दौरान भी उनका मन भारत और उसकी आजादी की सलामती के बारे में ही लगा रहता था। सक्रिय राजनीति से हटने के बाद उनके द्वारा लिखे गए साहित्य में भारत के सामने आने वाली तमाम चुनौतियों का जिक्र किया गया है।

दिल्ली के अरविंद आश्रम से संबद्ध और कर्मधारा पत्रिका के सह संपादक त्रियुगी नारायण ने बताया कि आज भारत को बाहरी ताकतों के कारण जिन खतरों का सामना करना पड़ रहा है अरविंद ने उसके बारे में बहुत पहले ही आगाह कर दिया था, लेकिन देश के कर्णधारों ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने बताया कि 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिलने के अवसर पर तिरुचिरापल्ली रेडियो स्टेशन के जरिए दिए गए अपने संदेश में भारत को दो-दो चीजों के प्रति आगाह किया था। इनमें से एक था बाहरी ताकतों से खतरा और दूसरा सांप्रदायिकता की चुनौती। आज यही दोनों समस्याएं भारत के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। बाद में बड़ौदा की राजकीय नौकरी छोड़कर अरविंद का सक्रिय रूप से राजनीति में आगमन हुआ।

साहित्य कार्य जारी रहने के साथ- साथ उन्होंने गुप्त क्रांतिकारियों के संगठनों से भी नाता बनाए रखा। 1907 में कांग्रेस सूरत अधिवेशन में उग्रपंथियों और नरमपंथियों का विभाजन हुआ। उग्रवादियों द्वारा अरविन्द की अध्यक्षता में अलग आंदोलन किया गया। अरविन्द को 1908 में अलीपुर के चर्चित षड्यंत्र में गिरफ्तार किया गया। जेल में उन्हें दीर्घ अवधि तक आध्यात्मिक अनुभव हुए। 1909 में जेल से रिहाई के एक वर्ष बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अरविंद पांडिचेरी चले गए। पांडिचेरी प्रवास में अरविंद ने आध्यात्मिक साधना के साथ-साथ साहित्य सृजन का काम जारी रखा।

इसी दौरान उन्होंने अति मानस सिद्धांत दिया, जो आधुनिक भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है। पंद्रह अगस्त 1947 को उनके 75वें जन्म दिवस पर देश को आजादी मिली। अरविंद का देहावसान पांच दिसंबर 1950 को हुआ। अरविंद का अंग्रेजी में लिखा महाकाव्य सावित्री एक महत्वपूर्ण रचना है। द लाइफ डिवाइन, लाइट्स आन योग, बैसेज आन योग, एसेज आन गीता उनके दार्शनिक विषयों पर लिखे गए अन्य चर्चित ग्रंथ हैं।

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